Tuesday, December 31, 2019

कहाँ पर बोलना है

*Lovely poem.* 
 
*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं।*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*

*कटा जब शीश सैनिक का*
*तो हम खामोश रहते हैं।*
*कटा एक सीन पिक्चर का*
*तो सारे बोल जाते हैं।।* 

*नयी नस्लों के ये बच्चे*
*जमाने भर की सुनते हैं।*
*मगर माँ बाप कुछ बोले*
*तो बच्चे बोल जाते हैं।।*

*बहुत ऊँची दुकानों में*
*कटाते जेब सब अपनी।*
*मगर मज़दूर माँगेगा*
*तो सिक्के बोल जाते हैं।।*

*अगर मखमल करे गलती*
*तो कोई कुछ नहीँ कहता।*
*फटी चादर की गलती हो*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*हवाओं की तबाही को*
*सभी चुपचाप सहते हैं।*
*च़रागों से हुई गलती*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*बनाते फिरते हैं रिश्ते*
*जमाने भर से अक्सर हम*
*मगर घर में जरूरत हो*
*तो रिश्ते भूल जाते हैं।।*
 
*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*

यह कविता बार बार पढ़े।
आपको हर बार एक नया अहसास होगा🌺💐

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