Thursday, January 7, 2010

Raatris khel...

रात्रिस खेल चाले...
या गूढ़ चांदण्यांचा,
संपेल ना कधीही .....हां खेल सावल्यांचा .....हां खेल सावल्यांचा।
हां चन्द्र ना स्वयंभू, रवि तेज़ वाहतो हां....
गृह्नात सावल्यांचा अभिषेक भोगतो हां...
प्रीतिस होय साक्षी..हां दूत सावल्यांचा...

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