उन्हें गर शगल है, रूठते जाने का
हमें भी जुनूं है, बार-बार मनाने का
इश्क़ की हाट में सम नहीं होते दोनों पलड़े
यही है जिंदगी , यही दस्तूर जमाने का
हम भी हर हाल में खरे साबित होंगे
जब भी करेंगे वो इरादा हमें आजमाने का
गुज़ार देंगे उम्र अब पहलू-ए-यार में
बस इंतज़ार है, उनके लौट आने का
जब रिश्तों पे छाने लगे धुंध-ए-उदासी
वक्त होता है चिराग़-ए-उम्मीद जलाने का
ये जो सिलसिला है, चलता है उम्र भर
कभी ख़ुद को, कभी उनको खोने-पाने का
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