Tuesday, January 3, 2012

दिल

"दिल"
दिल आखिर दिल है,
न ठुकराओ इसे इंकार से,
अरमानो से भारी ये,
अदब करो इकरार से;
महसूस करो धड़कन जो..
कीमती है इस जन्नत से,
परों से गिरा ये पंख,
है संभाला कई मुद्दत से...

जख्म-ए-रुह ये..
हवा की चुभन से,
फैलाये पंख तो,
मिलाये गगन से,
कमसिन-ए-नादाँ ये,
ब्कशो इसे इज्जत से,
परों से गिरा ये पंख,
है संभाला कई मुद्दत से...

खयालो में खो के,
उलझे बड़ी लगन से,
समाये तन से मन अपना,
पूरी मगन से;
कभी दौड़े बेलगाम,
कभी साँसे फ़ुरसत से,
परों से गिरा ये पंख,
है संभाला कई मुद्दत से...

कलम-ए-स्याही उतारे..
कभी ग़ज़ल-ए-कलाम से,
चाहे जाना जहाँ,
भागे उसी मक़ाम से;
हो हल्का कभी,या भारी..
जो उठे भारी मेहनत से,
परों से गिरा ये पंख,
है संभाला कई मुद्दत से...

खिलाये बागों को,
अपनी अदाओं के गुलशन से,
शबनमी बूंदें बरसाए,
अपनी ही धड़कन से;
ख़ुदा-ए-तोहफा ये,
रखो मुहोब्बत-ए-रहमत से,
परों से गिरा ये पंख,
है संभाला कई मुद्दत से...

शायरी-ए-मौसिक़ी हो..
इसकी हर लफ्ज़ से,
कतरा कतरा इश्क़-ए-लहू,
बहे हर नब्ज़ से,
हो अदब-ए-अहसान,
जो मिला है ख़ुदा की फितरत से,
परों से गिरा ये पंख,
है संभाला कई मुद्दत से..

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