Wednesday, January 18, 2012

तुम्हारी गहेरी आँखों से

कितने सपने,कितने उमंगे,
जैसे तसवीरें हिलती है;
एक ख्वाहिश लिए दिल,
कोई गीला जख्म छिलती है;
मेरी आरज़ू बादल पार,
जब झुला झूलती है ;
तुम्हारी गहेरी आँखों से,
मानों जिंदगी मिलती है...

रंजो गम की सियाही,
जब लफ्ज़ गिलती है,
खुद को अजनबी समझ,
जब जेहेन-ऐ-याद,भूलती है;
कोई सुखी डार,बचा हुआ,
आखरी पत्ता,हिलती है;
तुम्हारी गहेरी आँखों से,
मानों जिंदगी मिलती है...

तन्हाई में तुम्हारी जब,
एक सोच दुरी सिलती है;
वो बीतें पल याद कर,
जब पलकें गिलती है;
बहें कुछ मेरे आंसू,
बची उम्मीदें धुलती है;
तुम्हारी गहेरी आँखों से,
मानों जिंदगी मिलती है...

बस आ जाओ,के अब,
बची साँसे,उखड फूलती है,
एक आखरी तमन्ना,
मेरे परें डुलती है,
न जाने क्या होता है जब,
तुम्हारी पलकें खुलती है,
तुम्हारी गहेरी आँखों से,
मानों जिंदगी मिलती है...

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